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रियल मैड्रिड की बास्केटबॉल टीम को 1952 में रायमुंडो सपोर्टा के आगमन के साथ मजबूती से बल मिला। वहीं, एडमिनिस्ट्रेटर की सोच काफी दूर तक थी, जिसने टीम को पहचान दिलाने के लिए सभी संसाधन मुहैया करवाया। इसके साथ ही अपनी कई खूबियों के बीच उन्होंने टीम की कमान स्पेनिश बास्केटबॉल प्रतिभावान खिलाड़ी पेड्रो फर्नांडेज को सौंपी। जहां दोनों ने मिलकर एक बेहतरीन तरीके से मैड्रिड टीम को तराशा, जिसने आने वाले समय में स्पेन और यूरोप में एक नया आयाम हासिल किया।
1952 में सेंटियागो बर्नब्यू क्लब की गोल्डेन जुबली को शानदार तरीके से मनाने के लिए बास्केटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन करना चाहते थे। दरअसल, उस समय फेडरेशन के अध्यक्ष जीसस क्वेरजेटा थे उन्होंने कहा कि वह यंग एडमिनिस्ट्रेटर रायमुंडो सपोर्टा से इस सिलसिले में बात करेंगे। बताते चलें कि यह टूर्नामेंट रियल मैड्रिड के लिए एक शानदार सफलता के रूप में थी, जिसको रियल मैड्रिड के अध्यक्ष ने इस बारे में स्वीकार कर लिया कि यह क्या है।
सपोर्टा क्लब के सभी अलग-अलग क्षेत्रों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में थे, लेकिन बास्केटबॉल खेल के लिए उनके दिल में एक खास जगह थी। जहां उन्होंने नेशनल लीग (1957) और यूरोपियन चैम्पियनशिप कप (1958) जैसी प्रतियोगिताओं का निर्माण किया, जिसमें क्लब की एक शानदार जीत हुई। इसके साथ ही उनके सोचने का नज़रिया लोगों को काफी आकर्षित करता था और उनका सपना था कि बास्केटबॉल टीम फुटबॉल टीम की तरह एक अलग मुकाम हासिल करे।
इस अवधि के दौरान बास्केटबॉल टीम के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण व्यक्ति ने रियल मैड्रिड में अपनी जगह बनाने में क़ामय़ाबी हासिल की, जिनका नाम पेड्रो फर्नांडेज है। रियल मैड्रिड की युवा अकादमी की ट्रेनिंग के बाद इस एलिकांटे मूल निवासी ने 1958-59 सीज़न के लिए पहली टीम की कमान संभाली। वह काफी चतुर और बुद्धिमान खिलाड़ी के रूप में जाने जाते थे। वह यह जानते थे कि टीम के लिए सपोर्टा के महत्वाकांक्षी सपनों को कैसे हकीकत में तब्दील किया जाए। इसके साथ ही उन्होंने रियल मैड्रिड के साथ तेरह सीज़न का लम्बा वक्त गुज़ारा। जहां उन्होंने इस दौरान चार यूरोपीय चैम्पियनशिप कप, बारह लीग कप और ग्यारह कोपस डी एस्पाना (स्पेनिश कप) अपने नाम हासिल किए।
1952 में रियल मैड्रिड फ्रोंटन फिएस्टा एलेग्रे में शिफ्ट हो गया, जिसे जय अलाई के नाम से भी जाना जाता था। जहां टीम ने अपने घरेलू मैदान पर लगभग पंद्रह वर्षों तक खेला। बताते चलें कि यह एक छोटी सी इमारत थी, जिसमें 2,500 दर्शक के देखने की क्षमता थी और यहां टीम ने दो दीवारों वाले फ्रोंटन (बास्क पेलोटा) के कोर्ट में खेला। इसके साथ ही मैच के दिनों में यह जगह एक नरक की तरह थी। जो सीमेंट कोर्ट, गर्मी और प्रेशर कुकर जैसे वातावरण में प्रशंसको और विपक्षी टीम के लिए एक काफी मुश्किल जगह हो जाती थी। हालांकि फिएस्टा एलेग्रे रियल मैड्रिड के उन खास लम्हों और अविश्वसनीय वापसी का गवाह है, जो खासकर टीम ने यूरोपीय टीम के खिलाफ सफलता हासिल की थी।
रियल मैड्रिड ने यूरोपीय चैम्पियनशिप कप में अपना डेब्यू 12 मार्च 1958 को किया था। इसके साथ ही नेशनल लीग में भी ऐसा किया था, जिसका उद्घाटन एक साल पहले हुआ था। इग्नासियो पाइंडो के पुरुषों को प्रतियोगिता के पहले दो राउंड में कोई समस्या नहीं थी, लेकिन सेमीफाइनल में के आखिरी में अंक हासिल हुए। हालांकि स्पेन की सरकार ने राजनीतिक कारणों से मैड्रिड को एएसके रीगा के खिलाफ खेलने की अनुमति नहीं दी। नतीजा यह हुआ कि सोवियत टीम फाइनल में पहुंच गई और उसने पहले तीन यूरोपीय चैम्पियनशिप कप अपने नाम कर लिए। 1961 में टीमें फिर से सेमीफाइनल में एक-दूसरे से भिड़ीं, लेकिन इस बार सपोर्टा के पास तटस्थ्य स्थान पर खेलने का विचार था। दोनों टीमों ने एक-एक गेम अपने नाम किया लेकिन एएसके रीगा ने बेहतर अंकों के साथ फ़ाइनल में प्रवेश कर लिया था।
रियल मैड्रिड की बास्केटबॉल टीम की प्रगति उनके शानदार खिलाड़ियों के साथ करार करने का ही नतीजा नहीं थी बल्कि क्लब ने पचास के दशक में अपनी यूथ एकेडमी पर कड़ी मेहनत भी की थी। जहां उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए टीमें बनाई गईं और उनके लिए टूर्नामेंट भी आयोजित कराए गए। वहीं, इस नई नीति का नजीता 1960 के कोपा डी एस्पाना (स्पेनिश कप) के फाइनल में देखने को मिला। इस दौरान रियल मैड्रिड ने बार्सिलोना टीम को सेमीफाइनल से बाहर का रास्ता दिखाया और फिर फाइनल मुकाबले में अपनी रिजर्व टीम से मुलाकात की। फाइनल में पहुंचने के लिए लोलो सैंड की अगुवाई वाली हेस्पेरिया ने पिछले वर्ष के फाइनलिस्ट (ऐसमालिबार) और 1958 के चैंपियन (जोवेंटुड बाडालोना) को मात देकर बाहर किया था। वहीं, सीनियर टीम ने यह खिताब (76-64) से अपने नाम किया। इसके साथ ही रियल मैड्रिड की यूथ टीम और रिजर्व टीमों ने बेहतरीन परिणाम प्राप्त करना जारी रखा और खास बात यह रही कि बेहतरीन खिलाड़ी पहली टीम में भी गए और अपना योगदान समय-समय पर देते रहे।